आप एक साथ मोदी समर्थक और गांधी विरोधी कैसे हो सकते हैं?
नरेंद्र मोदी जितनी शिद्दत और श्रद्धा से महात्मा गांधी का जिक्र करते नजर आते हैं, उनके कई समर्थक उतनी ही शिद्दत और घृणा से गांधीजी को गालियां देते दिखते हैं

प्रधानमंत्री से जुड़े अपडेट्स देने वाली वेबसाइट पीएम इंडिया बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जनवरी को महात्मा गांधी की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इसमें कोई नई बात नहीं है. सत्ता में आने के बाद से हर साल वे बापू की जयंती और पुण्यतिथि पर ऐसा करते रहे हैं. वे जहां भी मौका मिले वहां महात्मा गांधी को पूरी दुनिया के लिए आदर्श भी बताते रहे हैं. लेकिन मोदी जी के समर्थक भी बापू के प्रति ऐसा ही सम्मान का भाव रखते हैं ऐसा कहना सही नहीं होगा. वैसे, प्रधानमंत्री के करोड़ों समर्थक हैं और ये लोग किसी के बारे में क्या सोचते हैं इसका उनसे लेना-देना नहीं होना चाहिए! लेकिन नरेंद्र मोदी के समर्थकों में से कई खुद को उनका भक्त बताते हैं. जब प्रधानमंत्री अपने ऐसे समर्थकों को ठीक से रोकते-टोकते नहीं दिखते, बल्कि कुछ मामलों में उन्हें आगे बढ़ाते हुए ही लगते हैं तो मामला थोड़ा जटिल हो जाता है.
उदाहरण के लिए, लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे चर्चित समर्थकों में से एक रहीं और अब मंडी, हिमाचल प्रदेश से भाजपा की सांसद कंगना रनौत के बयानों का संज्ञान लिया जा सकता है. गांधी जी की 150वीं जयंती पर कंगना ने उन्हें राष्ट्रपिता कहे जाने पर ही आपत्ति जता दी थी. कुछ साल पहले वे महात्मा गांधी और नेता जी सुभाष चंद्र बोस में से एक को चुनने का अजीब सा आग्रह भी करती दिखी थीं. तब कंगना रनौत ने सोशल मीडिया पर अखबार की एक पुरानी कतरन शेयर करते हुए लिखा था - ‘या तो आप गांधी के प्रशंसक हो सकते हैं या नेताजी के समर्थक. आप दोनों नहीं हो सकते हैं. चुनिए और तय कीजिए.’
कंगना के इस बयान को थोड़ा विस्तार से भी इसलिए देखा जा सकता है क्योंकि मोदी समर्थक अक्सर बहस-मुबाहिसों में कुछ उनकी जैसी ही बातें करते दिखाई देते हैं. महात्मा गांधी को निशाना बनाते हुए रनौत का यह भी कहना था कि “जिन लोगों में हिम्मत नहीं थी उन्होंने आज़ादी के लिए लड़ने वालों को अपने ‘मालिकों’ के हाथों में सौंप दिया था. ये वे लोग थे जो सिखाते थे कि अगर कोई एक थप्पड़ मारे तो अपना दूसरा गाल भी आगे कर दो और ऐसा करने से तुम्हें आज़ादी मिलेगी. इस तरह से आज़ादी नहीं केवल भीख ही मिल सकती है. महात्मा गांधी ने कभी भगत सिंह और नेता जी का साथ नहीं दिया. यह (अख़बार की कतरन) इस बात का सबूत है. आपको चुनने की ज़रूरत है क्योंकि इन सब (स्वतंत्रता सेनानियों) को एक ही दर्जा देना और जयंतियों पर याद करना न केवल मूर्खतापूर्ण बल्कि गैरजिम्मेदाराना भी है. हर किसी को अपने इतिहास और नायकों के बारे में पता होना चाहिए.”