जो डोनाल्ड ट्रंप कर सकते हैं, अंबानी-अदाणी क्यों नहीं?
राजनीतिक सत्ता से मुनाफे का जो खुला कारोबार डोनाल्ड ट्रंप चला रहे हैं वह दुनिया भर में अरबपतियों के लिए एक नई नज़ीर का काम कर सकता है
राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए मध्य-पूर्व को चुना. यह यात्रा 13 से 16 मई के बीच बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई. इस दौरान एक ओर कूटनीति और सरकारी कारोबार चल रहे थे, वहीं दूसरी ओर मध्य-पूर्व में ही ट्रंप के निजी कारोबार के असीमित विस्तार की खबरें भी सुर्खियों में थीं.
अपनी यात्रा के दौरान जब ट्रंप मध्य-पूर्व के देशों के साथ किये गये खरबों डॉलर्स के समझौतों का बखान कर रहे थे, ठीक तभी अमेरिकन मीडिया भी इन देशों में ताज़ा-ताज़ा हुए कई व्यावसायिक सौदों की जानकारी हमें दे रहा था. ये सौदे किसी न किसी रूप में डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े हुए थे. इनमें दोहा में कतरी सरकार के सहयोग से बनने वाला 550 करोड़ डॉलर्स का ट्रंप-ब्रांडेड गोल्फ रिजॉर्ट, दुबई में सौ करोड़ डॉलर्स की लागत वाला ट्रंप होटल और सऊदी अरब में ट्रंप से जुड़ी कंपनियों के कई नये रियल एस्टेट समझौते शामिल थे.
यूएई के शाही परिवार से जुड़ी कंपनी एमजीएक्स ने ट्रंप की यात्रा से ठीक पहले 200 करोड़ डॉलर्स की क्रिप्टोकरेंसी खरीदने का एक सौदा किया था. यूएसडी1 नाम की इस क्रिप्टोकरेंसी को जारी करने वाली कंपनी का नाम है वर्ल्ड लिबर्टी फायनेंशियल. इसमें 60 फीसदी हिस्सेदारी ट्रंप ग्रुप की है. इस कंपनी को चलाने वाले प्रमुख लोग हैं जैक विटकॉफ, एरिक ट्रंप और डोनाल्ड ट्रंप जूनियर. विटकॉफ ट्रंप प्रशासन के मध्य-पूर्व प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ के बेटे हैं. यानी दोनों पिता - सीनियर ट्रंप और विटकॉफ - यूएई के साथ अमेरिका के रिश्ते तय कर रहे हैं और उनके बच्चे वहां ट्रंप का कारोबार आगे बढ़ा रहे हैं.
पहलगाम आतंकी हमले के ठीक बाद पाकिस्तान की एक सरकारी संस्था — पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल — ने भी वर्ल्ड लिबर्टी फायनेंशियल के साथ एक बड़ा समझौता किया था. यह समझौता भारत-पाक संघर्ष के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के व्यवहार में आए बदलाव पर कई सवाल खड़े करता है. इस दौरान पहले तो ट्रंप काफी उदासीन दिखे, लेकिन बाद में एक तरह से पाकिस्तान के पक्ष में जाकर खड़े हो गए.
वर्ल्ड लिबर्टी फायनेंशियल दुनिया की सबसे तेजी से ऊपर जाने वाली और शायद सबसे ज्यादा विवादित क्रिप्टो करेंसी फर्म है. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इसमें निवेश करने वालों का भी भला होता है और जिस कंपनी में यह निवेश करती है, उससे जुड़े लोगों का भी.
डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े सौदों के बारे में पूरी तरह से कुछ कह पाना भले संभव न हो, लेकिन जो जानकारियां सामने हैं उनसे एक बात स्पष्ट है: अमेरिकी राष्ट्रपति को हितों के टकराव की चिंता किये बिना, राजनीतिक ताकत के बल पर अपना निजी साम्राज्य बढ़ाने में कोई संकोच नहीं है.