क्या आप खुद से ज्यादा रोज़ एआई को पानी पिलाते हैं?
किसी भी एआई सिस्टम में पानी दो तरह से खर्च होता है - डाटा सेंटर के सर्वर्स को ठंडा रखने में और इसे चलाने के लिए जरूरी बिजली पैदा करने में
लियो एस लो
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस भी हमारी तरह पानी पीती है. चैटजीपीटी के जीपीटी-3 मॉडल के साथ जब भी हम कोई छोटा सा संवाद करते हैं, वह करीब आधा लीटर पानी गटक जाता है. एक 100 शब्दों का ईमेल ड्राफ्ट करने के लिए भी उसे लगभग इतने ही पानी की ज़रूरत पड़ती है.
ऐसे में कई लोगों को लगता है कि एआई पर्यावरण के लिहाज़ से एक हानिकारक चीज़ ही है. उन्हें लगता है कि एआई किसी ऐसे दानव की तरह है जिसकी ऊर्जा और पानी की भूख और प्यास कभी मिटती ही नहीं. यह बात पूरी तरह ग़लत नहीं, लेकिन अपने-आप में पूरी और इतनी सीधी भी नहीं है.
जब लोग एआई को सिर्फ संसाधनों की बर्बादी मानने के बजाय वह किस तरह के प्रभाव डालती है, किन वजहों से डालती है और उन वजहों को प्रभावित करने के लिए क्या किया जा सकता है, यह जानने की कोशिश करेंगे तो तकनीक और पर्यावरण के बीच बेहतर संतुलन बनाया जा सकता है.
किसी भी एआई सिस्टम में पानी दो तरह से खर्च होता है - डाटा सेंटर के सर्वर्स को ठंडा रखने में और इसे चलाने के लिए जरूरी बिजली पैदा करने में.
सर्वर्स बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करते हैं और इन्हें ठंडा रखने के लिए कूलिंग टावर्स का इस्तेमाल किया जाता है. ये टावर्स गर्म जगहों पर पानी की फुहारें छोड़ते हैं. ठंडा करने के इस तरीके को इवैपोरेटिव कूलिंग कहते हैं क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाला पानी भाप बनकर उड़ जाता है. ज़ाहिर है तापमान नियंत्रण के इस तरीके से स्थानीय जल स्रोतों (नदी, तालाब, जमीन आदि) का पानी कम हो जाता है.